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NewsOrator Hindi > एजुकेशन > प्रदूषण की समस्या | Pollution problem essay | प्रदूषण निबंध
एजुकेशन

प्रदूषण की समस्या | Pollution problem essay | प्रदूषण निबंध

Manish Agrawal
Last updated: 2021/03/22 at 1:59 PM
Manish Agrawal
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7 Min Read
Pollution problem essay
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प्रदूषण की समस्या और समाधान

आज मनुष्य ने इतना विकास कर लिया है कि वह अब मनुष्य से बढ़कर देवताओं की शक्तियों के समान शक्तिशाली हो गया. मनुष्य ने यह विकास और महत्व विज्ञान के द्वारा प्राप्त किया है. विज्ञान का आविष्कार करके मनुष्य ने चारों और से प्रकृति को परास्त करने का कदम बढ़ा लिया है. प्रदूषण की समस्या को देखते-देखते प्रकृति धीरे-धीरे मनुष्य की दासी बनती जा रही है. आज प्रकृति मनुष्य के अधीन बन गई है. इस प्रकार से हम कह सकते है कि मनुष्य ने प्रकृति को अपने अनुकूल बनाने के लिए कोई कसर न छोड़ने का निश्चय कर लिया है.

Contents
प्रदूषण की समस्या और समाधानप्रदूषण की समस्या में पृथ्वी की ऑक्सीजन का प्रतिशतप्रदूषण की समस्या में प्रकृति के नियम

जिस प्रकार मनुष्य, मनुष्य का और राष्ट्र-राष्ट्र का शोषण करते रहे है, उसी प्रकार मनुष्य प्रकृति का भी शोषण करता रहा है. वैज्ञानिको का कहना है कि प्रकृति में कोई गंदगी नहीं है. प्रकृति में बस जीव जंतु प्राणी तथा वनस्पति जगत परस्पर मिलकर समतोल में रहते है.

प्रत्येक का अपना विशिष्ट कार्य है जिससे सड़ने वाले पदार्थो की अवस्था तेजी से बदले और वह फिर वनस्पति जगत तथा उसके द्वारा जीवन जगत की खुराक बन सके अर्थात प्रकृति में ब्रम्हा, विष्णु और महेश का काम अपने स्वाभाविक रूप में बराबर चलता रहता है. जब तक मनुष्य का हस्तक्षेप नहीं होता तब तक न गंदगी होती है और न रोग. जब मनुष्य प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप करता है तब प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है और इससे सारी सृष्टी का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है.

आज का युग ओद्योगिक युग है. ओध्योगीकरण के फलस्वरूप वायु प्रदूषण बहुत तेजी से बढ़ रहा है. ऊर्जा तथा उष्णता पैदा करने वाले संयंत्रो से गर्मी निकलती है. यह उद्योग जितने बड़े होंगे और जितना बढ़ेंगे उतनी ज्यादा गर्मी फैलायेंगे.

इसके अतिरिक्त ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए जो ईंधन प्रयोग में लाया जाता है वह प्राय: पूरी तरह नही जल पाता. इसका दुष्परिणाम यह होता है कि धुएँ में कार्बन मोनोआक्साइड काफी मात्रा में निकलती है.

आज मोटर वाहनों का यातायात तेजी से बढ़ रहा है. 960 किलोमीटर की यात्रा में एक मोटर वाहन उतनी ऑक्सीजन का उपयोग करता है जितनी एक आदमी को एक वर्ष में चाहिए. दुनिया के हर अंचल में मोटर वाहनों का प्रदूषण फैलता जा रहा है. रेल का यातायात भी आशातीत रूप से बढ़ रहा है. हवाई-जहाजो का चलन भी सभी देशों में हो चूका है.

तेल शोधन, चीनी मिटटी की मिले, चमड़ा, कागज, रबर के कारखाने तेजी से बढ़ रहे है. रंग, वार्निश, प्लाष्टिक, कुम्हारी चीनी के कारखाने बढ़ते जा रहे है. इस प्रकार के यंत्र बनांने के कारखाने बढ़ रहे है यह सब ऊर्जा उत्पादन के लिए किसी न किसी रूप में ईधन को फूकते है और अपने धुएं से सारे वातावरण को दूषित करते है. यह प्रदूषण जहाँ पैदा होता है. वही पर स्थिर नहीं रहता.

वायु के प्रवाह में वह सारी दुनिया में फैलता रहता है. सन 1968 में ब्रिटेन में लाल धूल गिरने लगी, वह सहारा रेगिस्तान से उड़कर कैरिबियन समुद्र तक पहुँच गई थी.

आजकल लोग अपने घरों, कारखानों, मोटरों और विमानों के माध्यम से हवा, मिट्टी और पानी में अंधाधुंध दूषित पदार्थ प्रवाहित कर रहे है.

विकास के क्रम में प्रकृति अपने लिए ऐसी परिस्थितियाँ बनाती है जो उसके लिए आवश्यक है इसलिए इन व्यवस्थाओ में मनुष्य का हस्तक्षेप सब प्राणियो के लिए घातक होता है.

प्रदूषण का मुख्य खतरा इसी से है कि इससे परिस्थितियाँ संस्थान पर दबाव पड़ता है. घनी आबादी के क्षेत्रों में कार्बन मोनोऑक्साइड की वजह से रक्त संचार में पांच से दस प्रतिशत ऑक्सीजन कम हो जाती है.

प्रदूषण की समस्या में पृथ्वी की ऑक्सीजन का प्रतिशत

शरीर के ऊतकों को 25 प्रतिशत ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है. ऑक्सीजन की तुलना में कार्बन मोनोऑक्साइड लाल रुधिर कोशिकाओं के साथ ज्यादा मिल जाती है, इससे यह हानि होती है कि ये कोशिकाए ऑक्सीजन को अपनी पूरी मात्रा में सम्भालने में असमर्थ रहती है. लन्दन में चार घंटों तक ट्रेफिक सम्भालने के काम पर रहने वाले पुलिस के सिपाही के फेफड़ों में इतना विष भर जाता है मानो उसने एक सो पाँच सिगरेट पी हो. आराम की स्थिति में मनुष्य को दस लीटर हवा की आवश्यकता होती है. कड़ी मेहनत पर उससे दस गुना ज्यादा चाहिए लेकिन एक दिन में एक दिमाग को इतनी ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जितनी कि 17000 हेक्टेयर वन में पैदा होती है. मिट्टी में बढ़ते हुए विष से वनस्पति की निरंतर कमी महासागरों के प्रदूषण आदि की वजह से ऑक्सीजन की उत्पत्ति में कमी रही है. इसके अतिरिक्त प्रतिवर्ष हम वायुमंडल में अस्सी अरब टन धुवा फैकते है. कारों तथा विमानों से दूषित गैस निकलती है. मनुष्य और प्राणियों के साँस से जो कार्बन डाईऑक्साइड निकलती है. वह अलग प्रदूषण फैलाती है. कुछ वैज्ञानिक का मानना है कि वातावरण के प्रदूषण से वर्तमान स्फ्तार से 30 वर्ष में जीवन मंडल जिस पर प्राण और वनस्पति निर्भर है वह समाप्त हो जायेगा. पशु, पौधे और मनुष्यों का अस्तित्व नहीं रहेगा. सारी पृथ्वी की जलवायु बदल जायेगी, सम्भव है बरफ का युग फिर से आये. 30 साल के बाद हम कुछ नहीं कर पायेंगे. उस समय तक पृथ्वी का वातावरण नदियाँ और महासमुद्र सब विषैले हो जायेंगे.

प्रदूषण की समस्या में प्रकृति के नियम

यदि मनुष्य प्रकृति के नियमों को समझकर प्रकृति को गुरु मानकर उसके साथ सहयोग करता और विशेष करके तब अवशिष्टो की प्रकृति को लौटाता है तो सृष्टि और मनुष्य स्वस्थ्य रह सकते है, नहीं तो लम्बे, अर्से में अणु विस्फोट के खतरे की अपेक्षा प्रकृति के कार्य में मनुष्य का कृत्रिम हस्तक्षेप कम खतरनाक नहीं है. अतएव हमें प्रकृति के शोषण क्रम को कम करना होगा. अन्यथा हमारा जीवन पानी के बुलबुले के समान बेवजह समाप्त हो जाएगा और हमारे सारे विकास कार्य ज्यों के त्यों पड़े रह जायेंगे.

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